मांडवकर से युद्ध
नाहरराय ने पृथ्वी को दिल्ली में तेरह वर्ष की उम्र में देखा था और उनके इस गुण से प्रभावित होकर अपनी कन्या का विवाह पृथ्वीराज के सोलह वर्ष की उम्र में कर देने का वचन सोमेश्वर चौहान को दे दिया, जब पृथ्वी 16 वर्ष के हुए और विवाह का समय आया तब नहारराय का विचार परिवर्तित हो गया और अपनी कन्या का विबाह पृथ्वी से करना अनुचित समझा। जो दूत विवाह की बात पक्की करने गया था, जब वो लौटकर सोमेश्वर राज चौहान को ये सारी बात बताया तब सोमेश्वर और सारे सामंत ने इसे अपमान समझा। सोमेश्वर राज ने अपने पुत्र पृथ्वीराज को मांडवर पर आक्रमण करने की आज्ञा दे दी। पृथ्वीराज ने अपनी सेना लेकर मांडवकर की ओर दौड़ पड़े। नाहरराय ने मीणाजाती के सरदार पर्वत राय को अपना सेनापति बना कर एक बहुत बड़ी सेना जमा कर ली और युद्ध शुरू हो गया। बहुत की भयानक युद्ध हुआ परन्तु विजयलक्ष्मी पृथ्वी के गले में हार पहना गयी, पर्वतराय मारा गया और नाहरराय राज्य सीमा से स्थित गिरिनार के पर्वत में जा छुपा। अब उन्हें आपनी गलती का एहसास हुआ और अपने दिए हुए वचन पर कायम न रहने के प्रायश्चित स्वरुप उन्हें इतने सारे निर्दोषों का रक्त बहा कर करना पड़ा। अंत में उसने पृथ्वीराज से क्षमा मांग कर अपनी बेटी जमवती का विवाह उनसे कर दिया। पृथ्वीराज जमावती से विवाह कर अजमेर ले आये।
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