सोमेश्वर और भीमदेव वध
भीमदेव पृथ्वीराज के बढ़ते प्रक्रम से बहुत ही दुखी था वो पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने की सोच रहा था जब ये बात पृथ्वी के कानो तक पहुंची तब उन्होंने अपने सब सामंतों को एकत्र किया और युद्धनिति बनाने लगे, इसी समय लोहाना पांच हज़ार सैनिक लेकर अजमेर आ पहुंचे चामुन्द्राय, जयतव राय देवराय बग्ग्री सभी ने अपनी युद्ध की सहमत्ति दिखाई। पृथ्वीराज चौहान ने अपने सेना को दो भागों में बनता एक का सेनापतो कैमाश को नियुक्त किया और दूसरा की बागडोर खुद के हाथों में रखी। अब वे युद्ध की लिए निकल पड़े। पृथ्वी की सेना ने भीमदेव के सेना पर इस वेग से आक्रमण किया की भीमदेव के सेना की पाँव उखड गए उन्हें आबू चोर कर भागना पड़ा और इस तरह से आबू पर पृथ्वीराज चौहान का अधिकार हो गया। चंदरबरदाई के अनुसार यह युद्ध विक्रम सम्बत 1164 में आधी रात के समय हुई थी इसमें दोनो ओर से 16000 सेना मारी गयी थी 13000 भीमदेव की और 3000 पृथ्वीराज की।
भीमदेव बार बार पृथ्वीराज से अपमानित होने के कारण उतीजित हो रहा था, जब उससे रहा न गया तो अपने सभी अधीन राजाओं और सामंतों के साथ मिलकर अजमेर पर धावा बोल दिया जब ये समाचार सोमेश्वर जी के कानो तक जा पहुंचा तब उनसे रहा न गया और एक वीर पुरुष के भांति उन्होंने भी युद्ध का आमंत्रण दिया। इस युद्ध में जयचंद्र ने अजमेर का साथ नहीं दिया क्योंकि पृथ्वी के बढ़ते पराक्रम को देखकर दिल्ली के महाराज अनानाग्पाल ने सोमेश्वर जी के सामने यह प्रस्ताव रखा था की पृथ्वी को दिल्ली का महाराज बना दिया जाए, इससे कन्नोज के राजा बहुत अप्रसन्न हुए थे क्योंकि बड़े नाती होने के कारण दिल्ल्ली पर पहले उनका अधिकार था, पर उन्होंने पृथ्वी को चुना था। उस समय पृथ्वीराज अजमेर में नही थे इसलिए सोमेश्वर राज चौहान अपनी वीर राजपुतों के साथ भीमदेव का मुकाबला करने चल दिए, उन्होंने उसे रोकना चाहा, बहुत भयानक युद्ध हुआ पर अंत में तीन सौ सैनिकों के साथ सोमेश्वर राज चौहान भी मारे गए। जब ये समाचार पृथ्वीराज के पास पहुंचा तो वो क्रोध से अधीर हो गए और उसी समय उन्होंने ये प्रतिज्ञा ली की जब तक वे भीमदेव से इसका बदला नहीं लेंगे तब तक वे किसी तरह का राजसुख को हाथ नहीं लगायेंगे, वो न ही पगड़ी बांधेंगे न ही घी खायेंगे। उन्होंने गुजरात पर आक्रमण करने का अनुमति दे दिया पर सामंतों ने उन्हें समझाया की पहले अजमेर का राज्याभिषेक हो जाना चाहिए, पृथ्वी ने उनकी बात मान ली, भीमदेव दांत पीस कर ही रह गया क्योंकि उसके इतने कोशिश करने पर भी वो अजमेर को हासिल न कर पाया। पृथ्वी का राज तिलक इधर हो गया।
सोमेश्व्वर राज की मृत्यु के बाद से ही पृथ्वी बहुत ही अधीर हो रहे थे उनके दिल में कांटे सा चुभने लगा। कुछ दिन सोच विचार करने के बाद उन्होंने भीमदेव पर आक्रमण करने का फैसला किया। पृथ्वीराज ने आपने सेना लेकर गुजरात के सीमा पर आ पहुंचा, भीमदेव के दूतों ने उन्हें खबर दिया की पृथ्वी अपने 64000 सेना लेकर गुजरात पर आक्रमण करने आया है। यह समाचार सुनकर उसने तुरंत ही एक लाख सेना एकत्र कर पृथ्वीराज से युद्ध करने निकल पड़ा ।पृथ्वीराज की सेना कुछ दूर रह गयी थी उन्होंने चंदरबरदाई को एक लाल पगड़ी और एक चोली देकर भीम देव के पास भेज दिया और ये कहलवा दिया की अगर वो चोली पहन कर युद्ध मैदान में आकर पृथ्वीराज के सामने घुटने टेके तोह ही उश्के प्राण बाख सकते है अन्यथा वो ये लाल पगड़ी बांध कर युद्ध मैदान में आ जाये ताकि उसके सहायको सहित उसके पिता के नाम उश्का रक्त नदी में बहा कर तर्पण किया जायेगा। चंदरबरदाई ने चलते समय एक खेला खेला उसने अपने गले में एक जाल,हाथ में एक कुदाल,दुसरे हाथ में दीपक, और एक सीढ़ी लेकर भीमदेव के इलाके पट्टनपुर पहुंचा, इसे देखकर हजारों की भीड़ उसके साथ हो ली, वह अब राज दरबार पहुंचा, भीमदेव चंदरबरदाई को पहचानता था उसे देखते ही उसने पूछा कहो चाँद ये कैसा स्वांग रचे हो, चन्द ने कहा पृथ्वी कहता है की अगर तुम उसके दर से आकश में छिप जोगे तो वो तुम्हे इस सीढ़ी से दूंढ़ कर मर डालेगा, अगर तुम उसके डर से समुन्द्र की गहराई में छिप जोगे तो वो तुम्हे इस जाल से पकर लेगा, आगर जमीन में छुप जावोगे तो ये कुदाल से खोद कर निक्कालेगा अगर तं उसके डर से कहीं अँधेरे में छिप जावोगे तोह ये दिए से खोज निकलेगा, अगर तुम्हे अपनी प्राण प्यारी है तो ये चोली पहन कर युद्ध में आ जाओ या फिर ये लाल पगड़ी बाँध कर युद्ध मैदान में आ जाओ। भीमदेव ये सुनकर बहुत क्रोधित हुआ और चाँद को वहीँ मार देना चाहा पर अपने राजपूत गुण के कारण किसी कवी पर हाथ उठाना सही नहीं समझा। उसने युद्ध की आज्ञा दे दी इधर पृथ्वीराज तैयार थे ही। आज के युद्ध में नित्ठुराय को सेनापति बनाया गया, और कान्हा के आंख की पट्टी भी खोल दी गयी। उसके आँख की पट्टी खुलते ही वह अपने शत्रु पर टूट पड़ा और इस वेग से आक्रमण किया की दुश्मन के पाव उखरने लगे उसका सामना करने के लिए मकवाना का पुत्र आगे बढ़ा,, और कान्हा के हाथों मारा गया। मकवाना के पुत्र के मरते ही भीमदेव की सेना थोडा दब गयी पर युद्ध बंद नहीं हुई, इसी समय सारंगराय ने जोर से आक्रमण किया और चौहान सेना का दन्त खट्टा करने लगा ये देख कर पृथ्वीराज चौहान स्वयं घोड़े में बैठ कर युद्ध करने लगे उनके युद्ध मैदान में आते ही चौहान सेना में फिर से वही जोश आ गयी और भीमदेव के सेना को पीछे धकेलने लगी, संध्या का समय होने लगा और बहुत सारे वीर दोनों दलों के मारे जाने लगे।इसी समय भीम देव का सामना पृथ्वी राज से हो गया, दोनों दलों की सेना की तलवार की गूँज से सारा माहौल थर्रा उठा। भीमदेव को पृथ्वीराज ने एकाएक ऐसा वार किया की उसका सर दूर जाकर गिर गया। भीमदेव की मरते ही चारो ओर पृथ्वीराज की जयजयकार होने लगी। सारी गुर्जर सेना पट्टनपूरी की ओर भागने लगी, इस युद्ध में पृथ्वीराज की ओर से 1500 घुड़सवार, पांच सौ हाथी, और पांच हज़ार सिपाही काम आये।
इसके बाद पृथ्वीराज ने भीमदेव के पुत्र वनराज को गुजरात की गद्दी पर बिठाया और खुद वहां से अजमेर की ओर लौट आये।
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