Monday 29 September 2014

History of Prithviraj Chauhan in Hindi - The Indian Last Warrior

मुहम्मद गौरी आक्रमण


परन्तु शाहबुद्दीन ने इसे अपना अपमान समझा और पृथ्वीराज चौहान से अपना बदला लेने का ठान लिया। एक बार पृथ्वीराज चौहान लट्टूवन में शिकार खेलने गए थे, जब गौरी को इसबात का पता चला तो उसने उसी समय उनपर आक्रमण कर दिया, पर उसे उस बार भी हार का सामना करना पड़ा, उस समय गौरी किसी तरह भागने में सफल हो गया था। 

कुछ समय के बाद अब पृथ्वीराज नागौर मैं थे, उन्हें ये ससमाचार मिला की मुहम्मद गौरी फिर से आक्रमण करने की फिराक में है, इतना सुनते ही पृथ्वीराजने अपनी सेना एकत्र करना शुरू कर दिया, इस वक़्त पृथ्वीराज के पास केवल 8000 सैनिक थी इसलिए उन्होंने दिल्ली अपने नाना अनंगपाल जी से कहलवा कर 4000 सैनिकों को और मंगवा लिया अपनी साडी सेना को तैयार करने के बाद पृथ्वीराज सारुंड की ओर चल दिए और दुश्मन के आने का इंतज़ार करने लगे, इस समय भारत के इतिहास का काफी भीषण समय था क्योंकि विदेशी भारत पर बार बार आक्रमण कर रहे थे और केवल पृथ्वीराज ही उनका अकेला ही मुकाबला कर रहे थे, इतिहासकार के अनुसार कश्मीर के मुसलमान और पंजाब के कुछ भागो के हिन्दू भी पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध मुहम्मद गौरी का साथ दे रहे थे, एक बात तो बिलकुल ही निश्चित है की एक मात्र पृथ्वीराज चौहान के कारण ही कई वर्षों तक विदेशी भारत की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाए।

 मुहम्मद गौरी की सेना पृथ्वीराज चौहान की ओर आगे बढती चली आ रही थी, जिसकी खबर पृथ्वीराज को पहले से थी, पृथ्वीराज ने अपना भेदिया भेज कर जानकारी मंगवानी चाही, भेदिया ने उन्हें जानकारी दी की मुहम्मद गौरी तीन लाख सेना के साथ आक्रमण करने के लिए आ रहा है, उनके सेना में गखर, काबुली,कश्मीरी,हक्शी, आदि तरह के सेना है। यद्यपि पृथ्वीराज पर गौरी ने एक बड़ी सेना के साथ हमला किया था और पृथ्वीराज के पास केवल पंद्रह हज़ार ही सेना थी, इसलिए इस बार पृथ्वीराज को गौरी के बहुत बड़ी सेना का सामना करना पड़ा था, इस बार का युद्ध बहुत ही भयानक था , यह युद्ध भी सारुंड के समीप ही हुआ था। जब मुहम्मद गौरी को ये पता चला की पृथ्वीराज के पास थोड़ी सी ही सेना है तो वह बहुत खुश हुआ, और सबसे पहले खुरासानी सेना को आक्रमण करने की आज्ञा दे दी, इस आक्रमण को बचने के लिए लोहाना अजानुबाहू अग्रसर हुई, लोहाना की वीरता से मुसलमान सेना की छक्के छुट गयी।पृथ्वीराज की मदद करने हेतु कान्हा भी नागौर से आ पहुंचा, पृथ्वीराज चौहान की वीरता और युद्ध कुशलता को देखकर दुश्मन अपने होश खोने लगे, कान्हा ने भी बड़ी वीरता दिखाई, मुसलमान सेना पृथ्वीराज,कान्हा,चन्द्र,पुय्न्दीर, की वीरता देखकर सहम गयी और कराह उठी,जो हो इस थोड़ी सी सेना ने ऐसा विचित्र काम कर दिखाया जो की असंभव सा लगता है। छोटे से हिन्दू सेना से मुसलमान सेना हताशत हो रहे थे, हिन्दू सेना यवनी सेना को छिन्न-भिन्न करते हुए मुहम्मद गौरी की ओर अग्रसर हुई, ये देखकर गौरी घोडा छोड़ हठी पर सवार हो गया और यावनी सेना चारो ओर से उशे घेर कर उशकी रक्षा करने लगे। सभी राजपूत वीर अपनी प्राणों के ममता को छोड़ कर युद्ध कर रहे थे उन्हें केवल यवनी सेना के खून की प्यास थी। 

मुहम्मद गौरी को हाथी में सवार देख कर जैतसी की सेना गौरी की तरफ अग्रसर हुई, वह युद्ध करते करते एक ऐसे जगह में जा पहुंचा जहाँ से निकल पाना असंभव था, वो चारो ओर से घिर चूका था, इस समय पृथ्वीराज की दृष्टी जैतसी पर पड़ गयी और उन्होंने अपना घोडा जैतसी की तरफ भगाया, उन्होंने चारों ओर से घेरे हुए यवनी सेना को अकेले ही परलोक भेज दिया, जैतसी ने भी बड़ी बहादुरी दिखायी। यवनी सेना पीछे भागने को मजबूर हो गयी,गौरी फिर से हाथी छोड़ घोडा में बैठ युद्ध करने लगा पर कोई काम न आया। छोटे से हिन्दू सेना के सामने उतनी बड़ी मुसलमान सेना पीठ दिखाने को मजबूर हुई, गौरी भी उनके साथ भागा, परन्तु पृथ्वीराज के मना करने पर भी जैतसी ने गौरी का पीछा कर उसे पकड़ लिया और पृथ्वीराज के चरणों में लाकर पटक दिया। 

गौरी को फिर से बंदी बना लिया गया। पृथ्वीराज ने इन सभी झमेलों से निश्चिंत होकर इच्छन कुमारी से विवाह किया और इस आनंद के मौके पर गौरी को धन देकर छोड़ दिया। परन्तु स्त्रियौ के सम्बन्ध में पृथ्वीराज की अभिलासा जैसे जैसे पोरी होती जाती वैसे वैसे और बढ़ती जा रही थी। एक वर्ष के बाद ही पृथ्वीराज इच्छन कुमारी से ट्रिप हो गए और दूसरी की आवश्यकता आ पड़ी। इसी बीच उनकी नज़र कैमाश की बहन पर जा पड़ी, और शादी करने की इच्छा जताई, कैमाश के पिता ने उनकी बातें मान ली और अपनी दोनों पुत्रियों का विवाह करवा दिया साथ ही कई आदमियों की जान की रक्षा की।


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